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स्त्री
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जैसा कि इस संग्रह के शीर्षक से पता चल रहा है कि यह संग्रह स्त्री की दिशा व दशाओं पर कविताओं के माध्यम से प्रकाश डाला गया है । इस कार्य के लिए मेरे सहयोगी लेखिका आ0 भानु श्री सोनी 'तेजस्विनी' जी ने बहुत सहयोग किया । उन्होंने स्त्री विषय पर उत्तम सृजन किया । इस संग्रह के प्रथम भाग में जहां आ0 भानु श्री सोनी 'तेजस्विनी' जी ने स्त्री के जोश व जुनून को दर्शाने वाला काव्य सृजन किया वही दूसरे भाग में स्त्री के विभिन्न रूपों में बारे में प्रकाश डाला गया हैं ।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान में स्त्री को हक़ एवं अधिकार मिलने पश्चात उनके प्रति हो रहे शोषण एवं अत्याचारों में कमी आई हैं । अब वह काफी हद तक सुदृढ़ होने लगी हैं ।

सदियों से प्रताड़ित नारी अब खिलने लगी है । वह हर क्षेत्र में कार्य कर रही हैं । वह पुरुषों से किसी भी क्षेत्र में कम नहीं है । सरकारी सेक्टर से लेकर निजी सेक्टर तक हर कार्य में राष्ट्र की उन्नति के लिए महिलाएं बढ़ चढ़ कर योगदान दे रही ।

मित्रों स्त्री ईश की गढ़ी एक ऐसी अनुपम कृति है जिसके मन का कोई थाह नहीं । जिसे समझना बहुत ही मुश्किल है । इह लोग हो या भू लोग हो या स्वर्ग लोग आज तक नारी को कोई नहीं समझ पाया । औऱ ही कोई जीत पाया है । स्त्री इस धरा की धुरी हैं । जिसकी कोख में मनुष्यता का बिज पनपता है । हमे नारी का सम्मान एवं आदर करना चाहिए ।

स्त्री से मिलकर परिवार बनता हैं । परिवार की मालिनी जितनी मजबूत होगी, जितनी शिक्षित होगी उतना ही परिवार मजबूत होगा । उन्नत होगा ।

कुछ घटनाएं हमे विषयुक्त मानसिकता का परिचय देती हैं जिसे मानवता शर्मशार हुई हैं । ये हमारी विकलांग मानसिकता का परिणाम है । कुसंगति का परिणाम है । स्त्री के प्रति अपने विचारों को बदलने की जरूरत है । उसमें शुद्धता लाने की आवश्यकता है । महिला दिवस, मातृत्व दिवस मनाने की औपचारिकता मात्र न हो बल्कि नारी का सम्मान हो । उनका आदर हों । तभी हमारा राष्ट्र उन्नत होगा ।

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